नरेंद्र मोदी के 30 मई को प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक सदस्यों को आमंत्रित

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नई दिल्ली – नरेंद्र मोदी के 30 मई को प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक सदस्यों को आमंत्रित किया गया है, जबकि पाकिस्तान को इसके लिए निमंत्रण नहीं भेजा गया है. कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके जरिये भारत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है. संदेश यह है कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद नहीं करता है, तब तक उसके साथ रिश्तों में कोई गतिशीलता देखने को नहीं मिलेगी.  विदेश मंत्रालय ने बिम्सटेक देश के नेताओं को आमंत्रण की सूचना साझा करते हुए बताया कि सरकार ने यह कदम ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के तहत उठाया है. अब सवाल है कि हमारा पड़ोसी तो पाकिस्तान भी है, लेकिन जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह सरकार के इस कदम को आतंकवाद के खिलाफ भारत के आक्रामक रुख के तौर पर देखते हैं.

वह बताते हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और दोनों देशों के लोगों की बेहतरी के लिए मिलकर काम करने की अपनी इच्छा व्यक्त की. लेकिन इसके बावजूद पीएम मोदी ने इमरान खान को आमंत्रित नहीं किया और अब बिमस्टेक देशों को आमंत्रित किया गया है. इसका मतलब है कि आतंकवाद पर पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है.प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने बताया, ‘इसे हमें थोड़ा पीछे जाकर देखना होगा. 2 जनवरी 2016 को पठानकोट और फिर 18 सितंबर 2016 को उरी में हमला हुआ. इसमें पाकिस्तान का हाथ था. इसके बाद से भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को घेरने की कवायद शुरू की. इस्लामाबाद में 9-10 नवंबर 2016 को आयोजित सार्क सम्मेलन में कई मुल्कों ने हिस्सा न लेने का ऐलान किया था, जिनमें भारत प्रमुख था.’स्वर्ण सिंह बताते हैं कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे थे तो उन्होंने सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया, जिनमें तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर नवाज शरीफ भी शामिल हुए थे.

नवाज शरीफ के पारिवारिक आयोजन में पीएम मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गए. ये सारी कवायद इसलिए की जा रही थी कि दोनों देशों के बीच रिश्तों में मधुरता बनी रहे, लेकिन यह सब कुछ आगे नहीं बढ़ पाया और भारत को पठानकोट, उरी के रूप में जख्म झेलने पड़े.स्वर्ण सिंह ने बताया कि इन दो घटनाओं के बाद भारत ने तय किया कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना है. इसकी शुरुआत इस्लामाबाद में नवंबर 2016 में आयोजित सार्क सम्मेलन के बहिष्कार से हुई. भारत ने 6 जून 1997 को बैंकॉक में स्थापित बिम्सेटक को प्राथमिकता देना शुरू किया. जबकि इसके पहले भारत महज औपचारिकता निभाने के लिए बिम्सटेक के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेता था, लेकिन पाकिस्तान के रवैयै को देखते हुए भारत ने इसे प्राथमिकता देना शुरू किया.उन्होंने बताया कि भारत ने इसके तहत बिम्सटेक के वित्तीय सहयोग में 10 गुना की वृद्धि कर दी. बिम्सटेक के सदस्य देशों के साथ सैन्य अभ्यास की संख्या बढ़ाई गई. इसी रणनीति के तहत 15 सितंबर 2018 को पुणे में बिम्सटेक देशों का संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किया गया. इस अभ्यास में भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हुए. हालांकि नेपाल इसमें शामिल नहीं हो सका था.स्वर्ण सिंह बताते हैं कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सेटक देशों के शामिल होने को भारत प्रमुखता से प्रचारित प्रसारित करेगा, जिसका सीधा सा मकसद आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ अपने आक्रामक रुख को जाहिर करना है.