इस तरह की स्टडी – इस स्टडी को मार्च महीने में शुरू किया गया था. इसके लिए दोनों वैज्ञानिको ने कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया। इसके लिए तापमान, ह्यूमिडिटी और सरफेस को आधार बनाया गया। उन्होंने कोरोना वायरस मरीज की छींक से निकलने वाले ड्रॉपलेट को सुखाया। इसके बाद इसके सूखने की गति और दुनिया के 6 शहरों में हर दिन होने वाले संक्रमण से इसकी तुलना की है। रजनीश भारद्वाज ने बताया कि खांसने और छींकने पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण पहुंच सकता है। हमने अलग अलग शहरों के तापमानों का भी अध्ययन किया है। हमने पाया की सूखे वातावरण की तुलना में ह्यूमिडिटी वाली इलाके में वायरस के रहने की क्षमता 5 गुना तक ज्यादा थी। मुंबई में मानसून में ह्यूमिडिटी का स्तर 80% से ज्यादा हो जाता है। इस लिए मानसून में कोरोना संक्रमण का खतरा और बढ़ जायेगा।
सिंगापूर और न्यूयार्क का उदहारण – रजनीश भारद्वाज ने बताया कि सिंगापूर में ह्यूमिडिटी ज्यादा थी तो तापमान भी अधिक थी. इसलिए वहां कोरोना नहीं फैला। कोरोना ड्रॉपलेट को सूखने में सबसे ज्यादा समय न्यूयार्क में लगा. कोरोना से दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित शहरों में एक है।
गर्म मौसम में सुखकर मर जाते है वायरस – भारद्वाज ने बताया कि गर्म मौसम में खांसी और छींक से निकले ड्रॉपलेट जल्द सुख जाते है। रिसर्च में शामिल अमित अग्रवाल ने बताया कि गर्म मौसम में ड्रॉपलेट तरुंत सुख कर वाष्प बन जाता हैं। इसलिए रिस्क रेट में कमी आ जाती हैं.