star tv news – लोकसभा चुनाव के नतीजों की गिनती कल यानी 23 मई को होगी. इसी के साथ यह साफ हो जाएगा कि सत्ता की कुर्सी पर कौन-से दल का नेता बैठेगा. इससे पहले ईवीएम की सुरक्षा, हेरफेर और टेंपरिंग को लेकर विपक्षी दल खूब हो हल्ला कर रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच चुनाव आयोग ने सारे दावों और आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.
इससे पहले हमने बताया था कि वोटिंग से लेकर स्ट्रांग रूम तक ईवीएम को कैसे सुरक्षित लाया जाता है. स्ट्रांग रूम में ईवीएम को तीन सिक्युरिटी लेयर में रखा जाता है. रूम के दरवाजे पर डबल लॉक लगाकर सील किया जाता है. इसके बाद दरवाजे के पर एक 6 इंच की दीवार बना दी जाती है. कुछ जगह लकड़ी के बैरिकेड भी लगा दिए जाते हैं. इसका मकसद यह होता है कि अगर किसी ने भी काउंटिंग से पहले स्ट्रांग रूम में घुसने की कोशिश की तो सबसे पहले उससे लकड़ी या 6 इंच की दीवार को तोड़ना पड़ेगा.
काउंटिंग सेंटर का कैसा होता है माहौल – स्ट्रांग रूम काउंटिंग सेंटर में ही बना होता है. काउंटिंग के दिन यहां धारा 144 लागू होती है. इस इलाके के आसपास की सभी दुकानों को बंद कर दिया जाता है. काउंटिंग सेंटर के पास 100 मीटर तक किसी भी वाहन के प्रवेश पर प्रतिबंधित होता है. काउंटिंग सेंटर में पर्यवेक्षक (जिला निर्वाचन अधिकारी) के अलावा कोई भी मोबाइल फोन नहीं ले जा सकता. काउंटिंग के दौरान मतगणना अधिकारी काउंटिंग सेंटर से बाहर नहीं जा सकते.
किनके सामने खोला जाता है स्ट्रांग रूम – स्ट्रांग रूम को पर्यवेक्षक, पुलिस अधीक्षक, ऑब्जर्वर, अभ्यर्थियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ रिटर्निंग ऑफिसर और सहायक रिटर्निंग ऑफिसर की मौजूदगी में खोला जाता है. इसके बाद सीलिंग के दौरान भरे गए फॉर्म के आधार एक बार ईवीएम की जांच की जाती है कि कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई. सबकुछ सही पाए जाने के बाद आगे की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है.
कौन लोग करते हैं वोटों की गिनती – काउंटिंग में सरकारी विभागों में कार्यरत केंद्रीय और राज्य सरकार के कर्मचारी शामिल होते हैं. इन कर्मचारियों को काउंटिंग के एक हफ्ते पहले काउंटिंग सेंटर पर ट्रेनिंग दी जाती है. जबकि काउंटिंग के एक दिन पहले भी एक ट्रेंनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग में जिला निर्वाचन अधिकारी और चुनाव से संबंधित जिले के वे अधिकारी शामिल होते हैं जिनकी ड्यूटी चुनाव में लगी है. काउंटिंग से एक दिन पहले ट्रेंनिंग देने बाद उन्हें संबंधित संसदीय क्षेत्र में 24 घंटे के लिए भेज जाता है. खास बात यह है कि इससे पहले किसी भी अधिकारी-कर्मचारी को यह नहीं बताया जाता है कि उसे किस काउंटिंग सेंटर पर भेजा जाएगा. यह प्रक्रिया पूरी तरह से गुप्त रखी जाती है. काउंटिंग के दिन इन कर्मचारियों को सुबह 5 बजे काउंटिंग टेबल पर बैठना होता है. हर काउंटिंग टेबल पर काउंटिंग सुपरवाइजर, असिस्टेंट व माइक्रो पर्यवेक्षक होता है. इसके बाद इनके टेबल पर बैलेट यूनिट रखी जाती हैं. टेबल के चारों ओर जाली की घेराबंदी भी की जाती है.
कब से शुरू होती है काउंटिंग – Lok sabha Chunav 2019 के मतों की गणना सुबह 7:45 शुरू हो जाती है. सबसे पहले पोस्टल बैलट की गणना होती है. सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती होती है. पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल वे अधिकारी करते हैं जो सरकारी ड्यूटी में तैनात होते हैं और वोट नहीं कर पाए हों. वहीं सेना के कर्मचारियों को भी पोस्टल बैलेट से मतदान का अधिकार है. पोस्टल बैलेट के लिए चार टेबल तय होते हैं. सभी राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के नुमाइंदे इस गणना के गवाह होते हैं. हरेक टेबल पर मतगणना कर्मचारी को हरेक राउंड के लिए पांच सौ से ज्यादा बैलेट पेपर नहीं दिए जाते हैं. इसमें गलत भरे हुए या गलत निशान लगाये हुए बैलेट पेपर अवैध हो जाते हैं.
गिनती शुरू करने की क्या है नियमावली – पोस्टल बैलेट बाद इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफरेबल पोस्टल बैलेट (ETPBS) भी अगर आए हों तो उनकी गिनती होती है. इन पर क्यू आर कोड होता है. उसके जरिए गिनती होती है. आयोग की नियमावली के मुताबिक पोस्टल बैलेट और ईटीपीबीएस की गिनती पूरी होने के आधा घंटा बाद ईवीएम में दिए गए मतों की गिनती शुरू होती है. इसके लिए हरेक विधान सभा इलाके के हिसाब से सेंटर में 14 टेबल लगाए जाते हैं.
कितने समय लगता है एक राउंड की गणना में – हरेक टेबल पर एक-एक ईवीएम भेजी जाती है. इस तरह हरेक विधान सभा क्षेत्र के लिए एक साथ 14 ईवीएम की गिनती एक साथ होती है. अमूमन हर दौर में 30 से 45 मिनट का समय लगता है. मतगणना टेबल के चारों ओर पार्टियों या उम्मीदवारों के एजेंट रहते हैं, जो मतगणना पर पैनी निगाह रखते हैं. उनके लिए भी मतगणना अधिकारी तय फार्म 17 सी का अंतिम हिस्सा भरवाते हैं. फॉर्म 17 सी का पहला हिस्सा मतदान के पोलिंग एजेंट की मौजूदगी और दस्तखत के साथ पोलिंग प्रक्रिया शुरू करते समय भरा जाता है. मतगणना के समय आखिरी हिस्सा भरा जाता है. ताकि हरेक चरण में ईवीएम और अन्य मशीनों के सही सलामत होने का सबूत रहे.
क्या काम होता है पर्यवेक्षक का – मतगणना पर्यवेक्षक हर संसदीय क्षेत्र में तैनात होते हैं. ये सीधे चुनाव आयोग को रिपोर्ट करते हैं. इन्हीं की देखरेख में काउंटिंग प्रक्रिया चलती है. हर राउंड के बाद पर्यवेक्षक किसी भी दो मशीन को उठाकर नतीजों को फिर से देखता है. पर्यवेक्षक हर राउंड को कई बार जांचता है जिसके बाद चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देता है. इसके बाद नतीजों को सार्वजनिक किया जाता है. काउंटिंग के आखिरी राउंड में तीन बार पर्यवेक्षक जांचता है जिसके बाद नतीजे घोषित होते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को प्रत्याशी के प्रतिनिधि भी देखते हैं.
EVM और VVPAT की पर्चियों का मिलान – बैलेट यूनिट पर जितने उम्मीदवारों के नाम दर्ज होते हैं, उनके एक-एक प्रतिनिधि का नाम पता और अन्य जरूरी जानकारियां दर्ज कर अंदर प्रवेश करने दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से आयोग औचक आधार पर पांच मशीनों को पहले ही अलग कर लेता है, जिनकी ईवीएम और वीवीपैट की पर्चियों की गिनती का मिलान सबसे आखिर में होता है. हालांकि इस बार विपक्ष दल के लोग मिलान वाली ईवीएम और वीवीपैट की गिनती सबसे पहले करने की मांग कर रहे हैं.